वह मसीहा बन गया है

​हत्या के दाग
अब उस तरह काबिज़ नहीं हैं उसके चेहरे पर
उनके सायों को अपनी दमक में
वह धुँधला चुका है
उसकी चमक में
पगी हुई हैं भक्तित उन्वानों की
आकुल कतारें
उसकी दमक में चले आ रहे सम्मोहित लोगों की
भीड़ से उठते
वशीभूत नारे
आकण्ठ उन्मत्त
स्तुतियों की दीर्घ जीवी सन्तानों का मलय गान
उसकी धरती पर बरस रहा है
काली बरसात के मेढ़कों के मदनोत्सव पर


 
वह रचयिता है नये धर्मों का धर्म ग्रन्थों का
उसकी कमीज़ में फिट होते फ़लसफ़ों
 का
सृष्टि का नियामक वह सत्ता का

 
एक परोसा हुआ संकट
खुद को हल करता हुआ
नये चुस्त फॅार्मुलों से
ब्रैण्ड के पुष्पक विमान से
दुनिया लाँघता फूल बरसाता यहाँ आ चुका है...
 

अब वह मुझमें है
तुममें है
हमसे अलग कहीं नहीं
वह विजेता है नई सदी का
गरीबों का नाम जपता
उनकी लाशों पर पनपता
मसीहा है वह
मरणशील नक्षत्रों का
जहाँ हम जीवित हैं
जीते नहीं।

© Tushar Dhawal (तुषार धवल)
Audio production: Verseville