मौसी

वेटिंग रूम में

सबकुछ छोड़ आये अजीब चेहरे हैं

त्वचा चू रही है और जमीन गायब

समय की शुरुआत से जमा हुआ

एक बर्फीला वॉल क्लॉक व्यंग्य मुद्रा में

टेढ़ा टँगा हुआ

सिहर सिहर कर अपनी सुई हिलाता है

 

"यह कौन सा प्लेटफॉर्म है ?"

एक भावशून्य बिना चेहरे का बूढ़ा

पूछ कर चला जाता है

उसे कहीं नहीं जाना

बस पूछ कर टेढ़ी हँसी हँसता है

और दूसरों को यहाँ से कहीं दूर भेज देता है

तभी एक व्यस्त ट्रेन तेजी से आती है

सीटी बजाती हुई

उसमें लदे हैं

नीले भावहीन चेहरे पथरीली मूर्छा में

नीली आँखें नीले शून्य में टिकी हुईं

नीली पटरी पर नीली ठण्ढक में निकल जाती है

नीली ट्रेन

मैं हाँफता हुआ वेटिंग रूम में पहुँचता हूँ

"यह कौन सा प्लेटफॉर्म है?"

वह पूछता है

और खिखिया कर चला जाता है

नीली धुन्ध में

जमीन नहीं है वॉल क्लॉक अकड़ा हुआ 

वेटिंग रूम खाली

तुम जा चुकी हो नीला चेहरा लगाकर

उस व्यस्त ट्रेन में

तुम्हें पुकार रहा हूँ बेतहाशा

मैं वह गोद ढूँढ़ रहा हूँ जिसमें मेरा बचपन सहेजा हुआ है

मैं वो आवाज खोज रहा हूँ मुझे पुकारती हुई

मैं वह हृदय तलाश रहा हूँ जिसमें सुकून से था 

अब तक

 

मैं खोज रहा हूँ तुम्हें

और जहाँ जहाँ तुम हो सकती थी

मौसी !

वहाँ नीला पथरीला सन्नाटा है

विलाप के बाद छूटा हुआ शून्य है

© Tushar Dhawal (तुषार धवल)
Audio production: Verseville